News Josh Live, 01 Nov, 2020
कोरोना महामारी ने हर प्रकार के सेक्टर को प्रभावित किया है। जिससे देश में मंदी काफी बढ़ गई है। वहीं इसका पावर सेक्टर पर भी काफी प्रभाव पड़ा है। वहीं लॉकलाउन खुलने के बाद पावर प्लांट में उत्पादन व मांग की स्थिति पिछले तीन महीनें में काफी सुधरी है, लेकिन कोविड़ के शुरूआती चार महीने में सेक्टर पर जो असर पड़ा है, उससे बाहर निकलने में अभी वक्त लगेगा। असल में बिजली की मांग घटने और बिजली शुल्क वसूलने की प्रक्रिया के बधित होने का समूचे पावर सेक्टर पर असर हुआ है।
वहीं उसका बोझ आगे चलकर आम जनता को भी उठाना होगा। बिजली उत्पादन की लागत बढ़ने की वजह से वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) को भी बिजली की दर बढ़ानी होगी। इस बात का साफ इशारा राज्य की माली हालत पर जारी आरबीआई की नई रिपोर्ट में किया गया है।
कोविड ने मांग को जितना प्रभावित किया है, उसका असर पावर सेक्टर पर वित्त वर्ष 2020-21 के बाद भी रहेगा। स्थिति इतनी खराब है कि केंद्र सरकार की तरफ से 90 हजार करोड़ रूपए की मदद भी नाकाफी पड़ रही है। राज्यों की वित्तीय हालत पर भी इसका असर होना तय है, क्योंकि इस 90 हजार करोड़ रूपये का बोझ राज्यों के बजट पर भी पड़ने जा रहा है।
स्थिति सामान्य होने के बाद बिजली क्षेत्र को एक और राहत पैकेज देने की जरूरत होगी। रिपोर्ट मों उदय योजना के बारे में कहा गया है कि इसे जिन राज्यों ने अपनाया है, उनकी हालत में खास सुधार नहीं हुआ है। उदय योजना के तहत राज्यों के लिए बिजली खरीद व बिजली की बिक्री के अंतर को कम करना बाध्यता थी, रिपोर्ट कहती है कि स्थिति पिछले दो-तीन वर्षों में और खराब हुई है।
सिर्फ पांच राज्य (असम, हरियाणा, गोवा, गुजरात व महाराष्ट्र) जिस दर पर बिजली खरीद रहे है, उसकी पूरी कीमत वसूलने में सफल रहे है। शेष राज्यों में यह अंतर 30 पैसे प्रति यूनिट से लेकर दो रूपये प्रति यूनिट से लेकर दो रूपये प्रति यूनिट तक है। बिजली क्षेत्र के घाटे को पूरा करने के लिए वितरण कंपनियों को इतनी वृद्धि करनी सकती है। चालू वित्त वर्ष के दौरान डिस्कॉम्स के लिए वाणिज्यिक व औधैगिक मांग काफी कम हो गई है।
कई राज्य आवासीय बिजली की दर लागत से नीचे रखते है जबकि वाणिज्यिक व औधोगिक क्षेत्र से ज्यादा वसूलते है, ताकि भरपाई हो सकें। पहले लॉकडाउन से और अब औधोगिक सुस्ती की वजह से इस क्षेत्र में खपत कम हो गई है। केंद्रीय बिजली नियामक आयोग की 28 अक्टूबर, 2020 की रिपोर्ट बताती है कि मांग नहीं होने से देश के सभी पावर प्लांटों ने मिलाकर अपनी क्षमता का सिर्फ 57.73 फीसद उत्पादन किया है।